भारत का एक प्रमुख राज्य, अपनी जटिल राजनीतिक परिदृश्य, सांस्कृतिक विरासत, और जनसंख्या के साथ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 2025 के विधानसभा चुनावों के साथ, राज्य एक निर्णायक मोड़ पर है, जहां वर्तमान सरकार, विपक्ष, और उभरते नेता जैसे प्रशांत किशोर अपनी-अपनी रणनीतियों को तेज कर रहे हैं। यह विश्लेषण बिहार की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, और स्वास्थ्य परिस्थितियों, साथ ही जनता के मूड और प्रमुख नेताओं की भूमिका पर विस्तार से चर्चा करता है, जो 1 जुलाई 2025 तक की स्थिति को दर्शाता है।
राजनीतिक परिदृश्य बिहार की राजनीति गतिशील और अक्सर गठबंधनों के परिवर्तन से प्रभावित होती है। वर्तमान में, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए), जिसमें जनता दल (यूनाइटेड) (जद(यू)) नीतीश कुमार के नेतृत्व में और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शामिल हैं, सत्ता में है। नीतीश कुमार ने 2024 की शुरुआत में महागठबंधन छोड़कर एनडीए में वापसी की, जो उनकी रणनीतिक राजनीतिक चाल को दर्शाता है। महागठबंधन, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में, कांग्रेस, और अन्य छोटे दल शामिल हैं, मुख्य विपक्ष है। राजद सामाजिक न्याय और रोजगार गारंटी पर जोर दे रही है, विशेष रूप से पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के बीच समर्थन जुटाने के लिए। अन्य महत्वपूर्ण खिलाड़ी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के विभाजन हैं, जिसमें चिराग पासवान के नेतृत्व वाला लोजपा-आरवी एनडीए का हिस्सा है और 2024 के लोकसभा चुनावों में सभी पांच लड़ी गई सीटें जीती, और पशुपति कुमार पारस का आरएलजेपी, जो हाल ही में एनडीए से बाहर हुआ। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जो अक्टूबर 2024 में लॉन्च हुई, सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है, हालांकि 2024 के नवंबर के उपचुनावों में चार में से तीन सीटों पर जमानत खो दी। 2025 के चुनाव, जो अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले हैं, महत्वपूर्ण हैं, जिसमें एनडीए की मजबूत स्थिति और विपक्ष की रणनीतियां शामिल हैं। हाल ही में, चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष संशोधन पर विवाद हुआ है, जिसमें विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
प्रमुख राजनीतिक दल और नेता
1. जनता दल (यूनाइटेड) (जद(यू)): नीतीश कुमार, जो 2005 से कई बार मुख्यमंत्री रहे हैं, विकास और सुशासन पर जोर देते हैं। उनकी रणनीति ग्रामीण विकास, सामाजिक कल्याण योजनाओं, और जातीय समीकरणों को साधने पर आधारित है। हालांकि, उनके गठबंधन परिवर्तनों ने उनकी छवि को प्रभावित किया है, और कुछ मतदाता उन्हें "थकान" की प्रतीक मानते हैं।
2. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा): भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व, विशेष रूप से नरेंद्र मोदी और अमित शाह, की लोकप्रियता का लाभ उठा रही है। पार्टी ने बिहार में अपनी उपस्थिति मजबूत की है, विशेष रूप से ग्रामीण और ऊपरी जाति मतदाताओं को लक्षित करते हुए।
3. राष्ट्रीय जनता दल (राजद): लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में, राजद यादव और मुस्लिम मतदाताओं के कोर वोटबैंक पर निर्भर है। तेजस्वी यादव ने रोजगार और सामाजिक न्याय पर जोर दिया है, और युवा मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश की है।
4. कांग्रेस: कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा है, लेकिन इसकी भूमिका सीमित है। पार्टी ने बिहार में अपना प्रभाव खो दिया है, लेकिन फिर भी कुछ क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है।
5. लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा): चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस के बीच विभाजन ने पार्टी को कमजोर किया है, लेकिन चिराग पासवान ने दलित मतदाताओं को साधने की कोशिश की है।
6. जन सुराज पार्टी: प्रशांत किशोर द्वारा स्थापित, यह पार्टी विकास और पारदर्शिता पर केंद्रित है। पार्टी ने 'स्कूल बैग' को अपना चुनावी प्रतीक चुना है, जो शिक्षा और भविष्य की ओर इशारा करता है। प्रशांत किशोर और जन सुराज प्रशांत किशोर, एक पूर्व राजनीतिक रणनीतिकार, ने 2024 में जन सुराज पार्टी बनाई, जो बिहार में विकास और जवाबदेही पर केंद्रित है। पार्टी का एजेंडा शिक्षा, रोजगार, और शराबबंदी हटाने पर आधारित है, ताकि शिक्षा में सुधार के लिए धन जुटाया जा सके। 2024 के उपचुनावों में, जन सुराज ने चार सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन सभी हार गए, और तीन ने जमानत भी खो दी। इसके बावजूद, प्रशांत किशोर की पदयात्राओं ने जनता से सीधा संपर्क बनाया, खासकर युवाओं और प्रवासी संकट से प्रभावित लोगों के बीच। प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि जन सुराज 2025 के चुनावों में जीतेगी, और बिहार को 2029-30 तक मध्यम आय वाले राज्य में बदल देगी। हालांकि, पार्टी को अभी अपनी जड़ें मजबूत करनी होंगी, और यह देखना होगा कि वह जनता के विश्वास को कैसे जीतती है। जन सुराज शहरी, मध्य वर्ग, और युवा मतदाताओं को लक्षित कर रही है, जो पारंपरिक दलों से निराश हैं, लेकिन जाति-आधारित राजनीति में इसकी स्वीकार्यता अभी परीक्षण की अवस्था में है।
जनता का मूड विविध है, लेकिन कुछ सामान्य प्रवृत्तियां हैं। प्रशांत किशोर का दावा है कि 70% से अधिक लोग बदलाव चाहते हैं, जो पारंपरिक राजनीतिक दलों से निराशा को दर्शाता है। हालांकि, जाति और सामाजिक न्याय अभी भी महत्वपूर्ण कारक हैं, और मतदाता अपने सामाजिक समूहों के हितों को ध्यान में रखते हैं। विकास, रोजगार, और शिक्षा जैसे मुद्दे भी महत्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से युवा मतदाताओं के बीच। बेरोजगारी और पलायन बड़ी चिंताएं हैं, और मतदाता इन मुद्दों पर सरकार की प्रगति को देखना चाहते हैं। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि तेजस्वी यादव लोकप्रियता में ऊपर हैं, लेकिन नीतीश कुमार की छवि अब स्थायित्व की जगह "थकान" की प्रतीक बनती जा रही है। युवा वर्ग, खासकर पढ़े-लिखे बेरोजगार, अब सरकार से हिसाब मांगने लगे हैं, और सोशल मीडिया पर तीव्र बहसें चल रही हैं।
आर्थिक और विकास परिस्थितियां बिहार की अर्थव्यवस्था में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसमें 2023-24 में जीएसडीपी 8,54,429 करोड़ रुपये है, 14.5% की वृद्धि दर के साथ। प्रति व्यक्ति आय 66,828 रुपये है, जो आर्थिक प्रगति को दर्शाता है। कृषि, उद्योग, और सेवा क्षेत्रों ने विकास में योगदान दिया है, और बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है, जैसे ग्रामीण सड़कों का विस्तार 2005 में 835 किमी से 2025 तक 1.17 लाख किमी तक, और सड़क घनत्व 3167 किमी प्रति हजार वर्ग किमी। ऊर्जा खपत प्रति व्यक्ति 2012-13 में 134 किलोवाट घंटे से बढ़कर 2023-24 में 363 किलोवाट घंटे हो गई है। हालांकि, बेरोजगारी और पलायन अभी भी बड़ी चुनौतियां हैं। शिक्षा में, बजटीय आवंटन 21.4% (2024-25) है, लेकिन सरकारी स्कूलों में बुनियादी ढांचे और गुणवत्ता की समस्याएं हैं। स्वास्थ्य आवंटन 5.7% है, जो राष्ट्रीय औसत से कम है, और ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाएं अपर्याप्त हैं। कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है, लेकिन अपराध और भ्रष्टाचार के मामले अभी भी हैं।
बाहुबली प्रभाव और सत्ता का स्थानीय समीकरण
बिहार की राजनीति में बाहुबली (स्थानीय दबंग नेता) की छवि अब भी कई क्षेत्रों में मौजूद है, भले ही प्रत्यक्ष रूप से उनकी भूमिका कम हुई हो। भोजपुर, आरा, गया और सारण जैसे इलाकों में कई सीटों पर आज भी उम्मीदवारों की जीत का रास्ता स्थानीय प्रभाव और जातिगत वर्चस्व से तय होता है।
हाल के वर्षों में पुलिसिया सख्ती और प्रशासनिक निगरानी से उनकी शक्ति सीमित हुई है, लेकिन राजनीतिक दल अब भी इनके प्रभाव को ‘प्रॉक्सी कैंडिडेट्स’ के माध्यम से इस्तेमाल करते हैं।
मुस्लिम मतदाता और 'तुष्टिकरण' की बहस
मुस्लिम समुदाय बिहार की कुल जनसंख्या का लगभग 16% है। यह समुदाय ऐतिहासिक रूप से राजद का परंपरागत समर्थक रहा है, लेकिन अब युवा मुस्लिम वोटर शासन, रोजगार और सुरक्षा के आधार पर सोचने लगे हैं।
भाजपा द्वारा वक्फ बोर्ड या धार्मिक मुद्दों पर दिए गए बयानों से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की आशंका है, परंतु एक बड़ा वर्ग अब 'तुष्टिकरण' से अधिक सार्थक प्रतिनिधित्व और अवसर की मांग कर रहा है।
जनमानस की सोच: परंपरा से बदलाव की ओर
इस बार का चुनावी मूड बदला हुआ है। वोटर अब जाति से ऊपर उठकर सवाल पूछ रहा है — “सरकार ने क्या किया?”
C‑Voter के सर्वे में तेजस्वी लोकप्रियता में ऊपर हैं, लेकिन प्रशांत किशोर को भी पहली बार सीएम विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। नीतीश कुमार की छवि अब स्थायित्व की जगह ‘थकान’ की प्रतीक बनती जा रही है।
युवा वर्ग, खासकर पढ़े-लिखे बेरोज़गार, अब सरकार से हिसाब मांगने लगे हैं। सोशल मीडिया पर तीव्र बहसें, स्वतंत्र मंचों का निर्माण, और स्थानीय आंदोलनों की ताकत चुनावी हवा का रुख बदल सकती हैं।