नई दिल्ली: डोनाल्ड ट्रंप की 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में पुनः जीत ने न केवल अमेरिका के राजनीतिक परिदृश्य को एक नया दिशा दिया है, बल्कि वैश्विक राजनीति, व्यापार, और आर्थिक नीतियों पर भी गहरा असर डाला है। ट्रंप का पहला कार्यकाल उनके कट्टर राष्ट्रवादी दृष्टिकोण और "अमेरिका फर्स्ट" नीति के लिए जाना जाता है, जिसने दुनिया के प्रमुख देशों के साथ अमेरिका के रिश्तों को पुनः परिभाषित किया।
अर्थव्यवस्था में सुधार और रोजगार सृजन।
डोनाल्ड ट्रंप का पहला कार्यकाल अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए निर्णायक साबित हुआ। ट्रंप ने अपने प्रशासन में आर्थिक नीति को मजबूत किया, जिसका मुख्य उद्देश्य अमेरिकी बाजारों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बचाना और अमेरिकी श्रमिकों के लिए नए अवसर उत्पन्न करना था। ट्रंप प्रशासन ने कई बड़े निर्णय लिए, जिनमें प्रमुख थे:
1. टैक्स कटौती: ट्रंप ने 2017 में टैक्स कट्स एंड जॉब्स एक्ट (Tax Cuts and Jobs Act) लागू किया, जिसमें कॉर्पोरेट टैक्स को 35% से घटाकर 21% किया गया। यह निर्णय अमेरिकी कंपनियों को अधिक मुनाफा कमाने और उन्हें पुनः निवेश करने के लिए प्रेरित किया।
2. नौकरी सृजन: ट्रंप की नीतियों का मुख्य लक्ष्य था अमेरिकी कंपनियों को बढ़ावा देना ताकि वे अधिक से अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न कर सकें। उदाहरण के लिए, अमेरिकी कंपनियों ने अधिक विनिर्माण संयंत्रों को अमेरिका में खोला और कुछ प्रमुख कंपनियों जैसे Apple और Ford ने अपने उत्पादन संयंत्रों को अमेरिका में स्थानांतरित किया।
3. ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता: ट्रंप ने अमेरिकी ऊर्जा क्षेत्र को भी प्रोत्साहित किया। तेल और गैस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई प्रतिबंधों को हटाया और खनन उद्योग के लिए नीतियां बनाई, जिनसे अमेरिका ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ा।
विदेश नीति में बदलाव: अमेरिका की वैश्विक स्थिति।
ट्रंप का दूसरा कार्यकाल वैश्विक राजनीति में काफी प्रभावशाली साबित हुआ। उनकी विदेश नीति में बड़े बदलाव आए, जिनका उद्देश्य अमेरिका की शक्ति और इसके हितों को प्राथमिकता देना था।
चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध: ट्रंप ने चीन के खिलाफ आर्थिक युद्ध की शुरुआत की। चीन पर भारी शुल्क लगाए गए, ताकि अमेरिकी कंपनियों को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीन की एकाधिकार स्थिति से मुक्ति मिल सके। इसके परिणामस्वरूप, अमेरिकी कंपनियों ने चीन में उत्पादन को घटाकर अन्य देशों में अपना उत्पादन बढ़ाया, जैसे भारत और वियतनाम। इस नीति से अमेरिका के व्यापार घाटे में भी कमी आई, हालांकि इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगे उत्पादों का सामना करना पड़ा।
नाटो और यूरोपीय देशों से रिश्ते: ट्रंप ने नाटो देशों से यह मांग की कि वे अपनी रक्षा खर्चों को बढ़ाएं। उन्होंने यह आरोप लगाया कि अन्य देशों ने अपनी रक्षा जरूरतों के लिए अमेरिकी करदाताओं का पैसा इस्तेमाल किया। इससे यूरोपीय देशों के साथ रिश्तों में तनाव आया, लेकिन इसके बावजूद अमेरिका ने अपने नाटो सहयोगियों के साथ सुरक्षा और सामरिक रिश्तों को मजबूत किया।
रूस और मध्य-पूर्व में सुधार: ट्रंप ने रूस के साथ रिश्तों में सुधार की कोशिश की, लेकिन यह मुद्दा विवादास्पद रहा, खासकर अमेरिका में रूस के कथित चुनावी हस्तक्षेप के बाद। हालांकि, ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी सैन्य दलों की उपस्थिति मध्य-पूर्व में घटने लगी, विशेष रूप से सीरिया से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद।
भारत-अमेरिका संबंध: नए आयाम।
ट्रंप के कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के रिश्तों में महत्वपूर्ण बदलाव आए। ट्रंप ने भारत को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में देखा और दोनों देशों के बीच आर्थिक, व्यापारिक और रक्षा संबंधों को मजबूत किया।
रक्षा समझौते: ट्रंप प्रशासन ने भारत के साथ कई प्रमुख रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें LEMOA (Logistics Exchange Memorandum of Agreement) और COMCASA (Communications Compatibility and Security Agreement) शामिल हैं। इन समझौतों के तहत, दोनों देशों के सैन्य बलों के बीच समन्वय बढ़ा और भारत को अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों की आपूर्ति भी बढ़ी।
व्यापार और निवेश: ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते मजबूत हुए। दोनों देशों के बीच वस्तु और सेवाओं का व्यापार बढ़ा, और भारत ने अमेरिका से रक्षा उपकरणों की खरीदारी भी बढ़ाई। हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने भारत से H-1B वीजा नीतियों को कड़ा किया, जिससे भारतीय आईटी पेशेवरों को कुछ कठिनाइयाँ हुईं, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था में इसकी कोई बड़ी खामी नहीं आई।
वैश्विक आर्थिक प्रभाव।
ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों ने वैश्विक व्यापार और आर्थिक प्रणाली में बड़ा बदलाव किया। उनके निर्णयों ने न केवल अमेरिका की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया, बल्कि पूरी दुनिया की आपूर्ति श्रृंखला और वित्तीय बाजारों को प्रभावित किया।
वैश्विक व्यापार में अस्थिरता: ट्रंप के व्यापार युद्ध और संरक्षणवादी नीतियों ने वैश्विक व्यापार में अस्थिरता पैदा की। चीन, यूरोपीय संघ, और अन्य प्रमुख देशों के साथ व्यापार विवादों ने वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव की स्थिति उत्पन्न की। हालांकि, इन नीतियों ने अमेरिकी उत्पादन को बढ़ावा दिया, लेकिन इसके कारण वैश्विक व्यापार दर में मंदी भी आई।
अमेरिकी डॉलर की स्थिति: ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अमेरिकी डॉलर की स्थिति और भी मजबूत हुई, खासकर उनके द्वारा उठाए गए नीतिगत कदमों के कारण। यह स्थिति वैश्विक वित्तीय बाजारों पर गहरा प्रभाव डालने वाली रही, क्योंकि अमेरिकी डॉलर वैश्विक व्यापार और वित्तीय लेन-देन का प्रमुख माध्यम बना।
2024 में डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने अमेरिकी राजनीति को एक नई दिशा दी और वैश्विक स्तर पर प्रभाव डाला। उनके द्वारा लिए गए निर्णयों ने अमेरिका को एक सशक्त राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन इसके साथ ही दुनिया भर में कई नई चुनौतियाँ उत्पन्न की। ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति ने न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, बल्कि वैश्विक व्यापार, राजनीतिक रिश्तों, और कूटनीति पर भी गहरा प्रभाव डाला।
ट्रंप के कार्यकाल की नीति के दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन भविष्य में किया जाएगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि उनकी नीतियाँ वैश्विक शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। आने वाले वर्षों में, अमेरिका और बाकी दुनिया के बीच संबंधों में संभावित बदलाव देखने को मिल सकते हैं, जिनका प्रभाव वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।