पर्यावरण एवं जीव जंतुओं का संरक्षण गुरु जंभेश्वर जी के द्वारा दिखाए गए रास्तों से ही किया जा सकता है। जैसा कि सभी जानते हैं पर्यावरण संरक्षक और समाज सुधारक गुरु जंभेश्वर जी ने जो शिक्षाएं दी हैं, वह आज के समय में भी कितनी प्रासंगिक हैं। गुरु जंभेश्वर जी ने पर्यावरण, वातावरण, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु और मानवों के लिए जो सिद्धांत दिए हैं, जिससे समाज को और पर्यावरण को संरक्षित रखा जा सकता हैं। और आज के प्रतिकूल समय में जबकि पर्यावरण के संरक्षण की बात बड़े-बड़े संगठनों के द्वारा की जा रही है। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र संघ हो, चाहे अन्य जगह, चाहे वह ग्लोबल वॉर्मिंग की बात हो या फिर ग्लेशियर पिघलने की।
महाराज जी ने पहले ही सब कुछ समझ कर उसी वक्त पर्यावरण के उत्थान के लिए काम करना शुरू कर दिया था। जो आज हम देख रहे हैं कि दुनिया में पर्यावरण के संरक्षण के लिए बड़े-बड़े लोगों ने बीड़ा उठाया है, लेकिन दुनिया को शायद पता नहीं कि भारत ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना बहुत बड़ा योगदान गुरु जंभेश्वर जी के सिद्धांतों के द्वारा पहले ही विश्व को प्रदान कर दिया था। गुरु जी के समय के लोग शायद उनकी बातों को उस वक्त समझ नहीं पाए हो, लेकिन वह सभी कुछ इतनी प्रासंगिक थी, ये अब महसूस हो रहा है, जिसका व्याख्या नहीं किया जा सकता। अगर भारत और विश्व को सचमुच में पर्यावरण को बचाना है, अगर यह सभी सचमुच में पृथ्वी को हरा भरा और जीवो से परिपूर्ण देखना चाहते हैं, तो सर्वप्रथम गुरु जंभेश्वर जी के शिक्षाओं पर अमल किया जाना चाहिए। उनके द्वारा बताए गए सिद्धांत का पालन सर्वप्रथम करना चाहिए। एक भारतीय होने के नाते यह सब कुछ हमारे जहन में पहले से ही होना चाहिए था क्योंकि यही तो हमारी विरासत है। हमारा दुर्भाग्य है की सभी चीजें भारत में होने के बाद भी वे अगर विश्व में मान्य होती है, तभी हम स्वीकार करते हैं। जैसे कि योग को ही देख लीजिए, भारत में प्राचीन काल से योग के महत्व को बताया गया लेकिन जब अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों में योग के लिए एक उत्सुकता जागी, योग को योगा कहे जाने लगा, तब जाकर हम भारतीयों ने उसको स्वीकारा और आज हम इतरा रहे हैं कि योग भारत कि संस्कृति कि उपज है। वैसे ही आयुर्वेद की भी सफलता हम विदेशियों के द्वारा दी गई कसौटी पर परख कर करते हैं। और आज भी हम एलोपैथी को आयुर्वेद से ज्यादा महत्व देते हैं। जबकि हमारे पूर्वजों ने इतने आसान शब्दों में जीवन रोग मुक्त कैसे जिया जाए, उस का मर्म लिखकर हमारे लिए छोड़ा था।
महाराज जी अपने समय के विरले महापुरुष थे, जो कि भविष्य का भी ज्ञान रखते थे। तभी उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की बात उसी वक्त कर दी थी। जीवो से प्यार, पशु-पक्षियों को कैसे बचाया जाए, कैसे संभाला जाए, कैसे उनका भरण पोषण किया जाए, महाराज जी ने सब कुछ इतनी सहजता से सब को बताया था। शायद उस वक्त हम इन चीजों से अनभिज्ञ थे कि भविष्य में क्या होने वाला है। लेकिन आज के समय की मांग है वन्यजीव, जलजीव और पर्यावरण इन सब को संरक्षित और सुरक्षित रखना। तभी हमारे आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित हो पाएंगी। तभी हम खुली वादियों में सांस ले पाएंगे। अन्यथा यह पृथ्वी रहने लायक नहीं बचेगी और अगर बच भी सकती है तो केवल और केवल जंभेश्वर जी के बताए रास्ते पर चलकर।
भारत सरकार और दुनिया की सभी सरकारों को यह समझना होगा की पर्यावरण संरक्षण सिर्फ दिखावा नहीं, यह कोई कार्य नहीं अपितु खुद में धारण करने की चीज है। इसको खुद के अंदर जब तक समाहित नहीं किया जाएगा, तब तक हम पर्यावरण को नहीं बचा सकते हैं और ना ही हम खुद बच पाएंगे।
आश्चर्य की बात है कि आज पर्यावरण के, पेड़-पौधों के, जीव-जंतुओं के संरक्षण की बात होती है, वहां पर गुरु जंभेश्वर जी का जिक्र तक नहीं किया जाता। अब तो गुरुजी के सिद्धांतों तक को भुला दिया गया है। गुरु जी के वचनों को अगर याद किया जाता तो आज भारत और पूरी दुनिया की स्थिति ऐसी ना होती। आज समय की मांग है की दुनिया गुरू जंभेश्वर जी के पद चिन्हों पर चले, उनके वचनों को स्वीकार कर खुद में अंगीकृत करें, तभी जाकर पृथ्वी और जीव जंतु बच सकते हैं। अन्यथा परमेश्वर भी इसकी रक्षा नहीं कर पाएंगे। हम सभी जानते हैं कि हम कैसे विषम परिस्थितियों में जी रहे हैं। किस तरह के माहौल से हम गुजर रहे हैं। इंसान अपने संबंधियों से बात करने की भी फुर्सत नहीं जुटा पा रहा है, वह पैसा कमाता है और सब कुछ उसके दवाई में चली जाती हैं। 50-60 मंजिल वाले मकान पर एक दो कमरे का घर लेकर आदमी खुश हो जाता है, जैसा कि उसने बहुत कुछ पा लिया है। ना उसको पेड़-पौधों से कोई मतलब है, ना जीव जंतुओं से, और ना ही पर्यावरण के संरक्षण से ही कोई मतलब है। बस उनको बिजली मिलनी चाहिए, भले ही बिजली के उत्पादन में कार्बन डाइऑक्साइड निकलती हो, जो कि पर्यावरण के लिए घातक है। उनके घरों में ए.सी. चलनी चाहिए, भले ही ए.सी. से ऐसे जहरीली हवाएं निकलती हैं जो कि पर्यावरण को दूषित करती हो। उनकी गाड़ियां चलती रहनी चाहिए, भले ही गाड़ियों के धुएं से पर्यावरण दूषित होती हो। उससे उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता और ऐसे ही धीरे-धीरे मनुष्य अपनी ही अर्थी को कंधा देते देते शमशान तक पहुंचने की जल्दी में है। और मजे की बात यह है उसको पता ही नहीं कि जिसकी लाश वो ढो रहा है, वह उसकी खुद की लाश है।
और होना क्या है, हम संभल तो सकते नहीं, क्योंकि हम ज्यादा पढ़े लिखे हैं, हमने कुछ ज्यादा ही शोध कर लिया हैं। हम बहुत बुद्धिमान हो गए, क्योंकि हमने अपने पौराणिक ग्रंथों को कभी पढ़ा नहीं, हमने कभी अपनी साधु-संतों द्वारा दिखाए गए रास्तों पर चलने की जहमत नहीं उठाई, जिसका खामियाजा आज भारत को भुगतना पड़ रहा है। भारत की राजधानी विश्व के प्रदूषित जगहों में से एक है। ऐसे ही भारत के कई शहर है, जो लिस्ट में है। इन सब चीजों से हमें तब ही निपटारा मिल सकता है, जब हम अपने पौराणिक ग्रंथों, ऋषि-मुनियों और गुरुओं के दिखाए रास्ते पर चलें और अगर पर्यावरण संरक्षण की बात करें तो गुरु जंभेश्वर से बड़ा नाम कोई नहीं होगा। विश्व को आज समझना होगा कि अगर पर्यावरण संरक्षण करना है तो गुरु जंभेश्वर जी के दिखाए रास्ते पर ही संभव हो सकता है। और इसको एक चुनौती के रूप में ना लेकर स्वभाव के रूप में इसको अपने अंदर अंगीकृत करना होगा। और इसको अपने जीवन का एक भाग बनाना होगा। तभी कुछ बदलाव संभव है,अन्यथा दुनिया काल के कपाल में समाती जा रही है।