चंडीगढ़, 28 अक्टूबर 2024 – हरियाणा में 2024 के चुनाव परिणामों ने राज्य की राजनीति में कई महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं, जिसमें जाट समुदाय और दलितों के बीच बढ़ते मतभेद प्रमुख हैं। जाट समुदाय, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 12% है, ने इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को निर्णायक रूप से खारिज कर दिया। भाजपा की ओर से पिछले वर्षों में जाट समुदाय को साधने के कई प्रयास किए गए थे, लेकिन इन कोशिशों के बावजूद जाट वोटरों ने पार्टी को व्यापक रूप से अस्वीकार कर दिया।
जाट समुदाय और भाजपा का असफल समीकरण
पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने जाट समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई प्रयास किए, जिसमें आरक्षण की मांगों पर विचार, जाट नेताओं को पार्टी में प्रमुख पदों पर बैठाना, और जाट बहुल क्षेत्रों में विकास कार्यों के वादे शामिल थे। हालांकि, 2024 के चुनावों में जाट बहुल क्षेत्रों में भाजपा को भारी विरोध का सामना करना पड़ा। जानकारों का कहना है कि भाजपा के इन प्रयासों को जाट समुदाय ने महज “तुष्टिकरण” मानकर खारिज कर दिया और चुनाव परिणामों में यह असंतोष स्पष्ट रूप से सामने आया।
भाजपा के लिए यह बड़ा झटका इसलिए भी है क्योंकि 2019 के चुनावों में उसने जाट बहुल क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया था। 2024 में भाजपा ने जाटों की प्रमुख मांगों को हल करने के संकेत दिए, लेकिन इस बार जाट समुदाय ने विपक्षी पार्टियों को अपना समर्थन देते हुए भाजपा की रणनीति को नकार दिया।
जाट वर्चस्व और दलितों के साथ भेदभाव
हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों में से 20-25 सीटों पर जाट मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में जाट समुदाय का वर्चस्व समाज और स्थानीय प्रशासन में स्पष्ट है। हालांकि, जाटों के इस प्रभाव का नकारात्मक असर अन्य पिछड़े समुदायों, विशेषकर दलितों पर पड़ा है।
भविष्य की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
हरियाणा में जाट और दलित समुदायों के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। भाजपा द्वारा जाट समुदाय के प्रति तुष्टिकरण के प्रयासों के बावजूद, इस बार के चुनाव में जाट वोटरों ने भाजपा को नकारते हुए यह संकेत दिया कि केवल दिखावटी प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। हरियाणा के विकास के लिए यह आवश्यक है कि सभी समुदायों को समान अवसर और सम्मान मिले, ताकि राज्य में सामाजिक समरसता स्थापित हो सके।