इज़राइल और ईरान के बीच हालिया तनावपूर्ण घटनाक्रम से वैश्विक स्तर पर चिंताएँ बढ़ी हैं कि यह संघर्ष कहीं विश्व युद्ध का रूप न ले ले। यह मुद्दा न केवल मध्य-पूर्व में तनाव को बढ़ा रहा है बल्कि विभिन्न देशों के साथ भारत के रणनीतिक संबंधों पर भी प्रभाव डाल सकता है। भारत के लिए यह संकट महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसकी विदेशी नीति और वैश्विक आर्थिक स्थिरता इससे प्रभावित हो सकती है। भारतीय दृष्टिकोण से इस संघर्ष के प्रमुख पहलुओं को समझना आवश्यक है, जिसमें इस क्षेत्र में भारत के आर्थिक और सुरक्षा हितों का भी महत्व है।
संघर्ष की पृष्ठभूमि: एक व्यापक शक्ति संघर्ष।
इज़राइल और ईरान का आपसी शत्रुता का इतिहास दशकों पुराना है। हाल ही में ईरान समर्थित समूह हिज़बुल्लाह और हमास ने इज़राइल पर हमले किए, और इसके जवाब में इज़राइल ने दक्षिणी लेबनान और गाजा में हवाई हमले किए। इज़राइल ने ईरान पर मिसाइल हमले का भी आरोप लगाया, जिसके जवाब में ईरान ने सैकड़ों मिसाइलें दागी। यह तनाव तब और बढ़ा जब हौथी विद्रोहियों ने भी हमलों को तेज किया और सऊदी अरब और अमेरिका ने अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करना शुरू कर दिया, जिससे क्षेत्रीय संघर्ष की संभावनाएँ और प्रबल हो गईं।
हाल ही में इजरायल ने हमास और हिज़्बुल्ला के कई प्रमुख कमांडरों पर सफल हमले किए हैं, जिनमें इन संगठनों के कुछ उच्चस्तरीय नेता भी मारे गए। ये हत्याएँ इजरायल-हमास संघर्ष के बढ़ते स्तर को दर्शाती हैं, जिसमें हिज़्बुल्ला ने लेबनान से समर्थन भी दिया है।
हमास के कमांडर, जैसे मोहम्मद देइफ और याह्या सिनवार, जो हमास के सैन्य अभियानों के पीछे मुख्य योजनाकार माने जाते थे, को इजरायली हवाई हमलों में मार दिया गया। देइफ को गाजा पर 7 अक्टूबर को हुए हमले का प्रमुख योजनाकार माना जाता है, जबकि सिनवार हमास के नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण चेहरा था। इसके अतिरिक्त, हिज़्बुल्ला के वरिष्ठ नेता, जैसे इब्राहीम अकील, जो हिज़्बुल्ला के रेडवान बलों के कमांडर था, और मोहम्मद नासिर जैसे उच्चस्तरीय कमांडरों को भी निशाना बनाया गया। अकील को दक्षिणी बेरूत में मारा गया, जो हिज़्बुल्ला के मुख्य ऑपरेशन केंद्रों में से एक है। इन हमलों ने इजरायल और हिज़्बुल्ला के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है, जो अब पूरे क्षेत्र में अस्थिरता फैला सकता है।
भारत पर संभावित आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव।
इस संकट का भारत पर सीधा प्रभाव उसकी ऊर्जा आपूर्ति और आर्थिक स्थिरता पर पड़ सकता है। भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा मध्य-पूर्व से आयात करता है, और इस संघर्ष के चलते तेल की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना है। इसके परिणामस्वरूप भारत में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जो कि पहले से ही वैश्विक बाजारों में अस्थिरता के कारण उच्च स्तर पर है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेल कीमतों का बढ़ना महँगाई को और गंभीर बना सकता है और इससे विकास दर प्रभावित हो सकती है।
विदेश नीति में संतुलन का महत्व
भारत की विदेश नीति संतुलन पर आधारित है; भारत के इज़राइल और ईरान दोनों से अच्छे रिश्ते हैं। भारत और इज़राइल के बीच रक्षा और तकनीकी सहयोग मजबूत है, और दोनों देश कई रक्षा परियोजनाओं पर सहयोग कर रहे हैं। वहीं, ईरान भी भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार है, विशेष रूप से चाबहार बंदरगाह परियोजना में। ऐसे में इस संघर्ष के बीच भारत के लिए दोनों देशों के साथ संबंधों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। भारत को तटस्थ रहकर कूटनीतिक उपायों के माध्यम से समाधान का समर्थन करना होगा।
इस संकट ने तीसरे विश्व युद्ध के डर को बढ़ा दिया है, खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ संयुक्त रूप से देखे जाने पर। इज़राइल और ईरान के संघर्ष में अमेरिका का इज़राइल का समर्थन और रूस का ईरान का समर्थन इसे वैश्विक स्तर पर बढ़ाने का खतरा पैदा कर सकता है। हालांकि, कई विशेषज्ञ मानते हैं कि वैश्विक शक्तियाँ संघर्ष को सीमित रखने की कोशिश करेंगी। विश्व युद्ध की संभावना को रोकने के लिए अमेरिकी नेतृत्व और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को कूटनीतिक कदम उठाने की जरूरत है। लेकिन भारत को इस संकट के दौरान अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखते हुए सतर्क रहना होगा।