MP सरकार का हलफ़नामा विवादों में: महाजन रिपोर्ट, ओबीसी आरक्षण और हिंदू भावनाएँ ।

MP सरकार का हलफ़नामा विवादों में: महाजन रिपोर्ट, ओबीसी आरक्षण और हिंदू भावनाएँ । 2025-10-05
Rana Vanshmani
Rana Vanshmani

भोपाल/नई दिल्ली, अक्तूबर 2025:

मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने के समर्थन में जो हलफ़नामा दाख़िल किया है, उसने धर्म और राजनीति दोनों मोर्चों पर विवाद खड़ा कर दिया है। सरकार ने अपने पक्ष को मज़बूत करने के लिए रामजी महाजन आयोग (1983) की रिपोर्ट संलग्न की। इस रिपोर्ट में जातिगत भेदभाव के उदाहरण के रूप में रामायण और महाभारत की घटनाओं का हवाला दिया गया है। यही अब हिंदू संगठनों के आक्रोश का कारण बन गया है।

महाजन आयोग रिपोर्ट: ऐतिहासिक दस्तावेज़, विवादित संदर्भ

1980 में गठित महाजन आयोग ने 1983 में रिपोर्ट सौंपी, जिसमें बड़ी संख्या में जातियों को पिछड़ा वर्ग माना गया और 35% आरक्षण की सिफ़ारिश की गई।

रिपोर्ट ने यह तर्क देने के लिए कि जातिगत असमानता समाज में कितनी गहरी थी, शम्बूक वध और एकलव्य प्रकरण जैसे पौराणिक उदाहरण दिए। आयोग का मक़सद केवल विश्लेषण था, लेकिन इन कथाओं का अदालत में संदर्भ आज आस्था के सवाल से जुड़ गया है।

सरकार की सफ़ाई

राज्य सरकार ने साफ़ किया है कि हलफ़नामा मुख्य रूप से नवीनतम सामाजिक-आर्थिक आँकड़ों पर आधारित है। महाजन रिपोर्ट और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेज़ सिर्फ सहायक साक्ष्य के रूप में जोड़े गए हैं।

एक वरिष्ठ क़ानून अधिकारी ने कहा — “हमने कोई धार्मिक ग्रंथ या देवताओं पर टिप्पणी नहीं की। आयोग की रिपोर्ट महज़ एक ऐतिहासिक संदर्भ है।”

हिंदू भावनाओं का सवाल

हिंदू संगठनों और संत समुदाय का कहना है कि अदालत में ऐसे दस्तावेज़ प्रस्तुत करना जिनमें भगवान राम को जातिगत व्यवस्था से जोड़कर दिखाया गया हो, भावनाओं को ठेस पहुँचाने जैसा है।

उधर, उदारवादी और सुधारवादी पक्ष का तर्क है कि भारत में परंपराओं की आलोचनात्मक समीक्षा हमेशा होती रही है और सामाजिक न्याय की बहस में पौराणिक उदाहरणों का उपयोग शोध का हिस्सा है।

भाजपा की मुश्किल स्थिति

यह विवाद भाजपा के लिए राजनीतिक असहजता पैदा कर रहा है। पार्टी एक ओर खुद को हिंदू आस्था और राम मंदिर आंदोलन की वाहक बताती है, वहीं दूसरी ओर उसकी ही सरकार पर आरोप है कि उसने सुप्रीम कोर्ट में ऐसे दस्तावेज़ प्रस्तुत किए जो भगवान राम को जातिगत भेदभाव से जोड़ते हैं।

भाजपा का कहना है कि यह केवल आयोग की पुरानी रिपोर्ट है, न कि सरकार की सोच। फिर भी यह घटना भाजपा की दोहरी चुनौती को सामने लाती है — हिंदू आस्था की रक्षा और ओबीसी न्याय की राजनीति दोनों को एक साथ साधना।

विवाद की जड़

असल समस्या आरक्षण प्रतिशत नहीं, बल्कि आस्था और सामाजिक न्याय की टकराहट है। सरकार यह दिखाना चाहती थी कि पिछड़े वर्गों का वंचित होना ऐतिहासिक रूप से सिद्ध है। लेकिन इस तर्क को साबित करने के लिए चुने गए दस्तावेज़ अब धार्मिक विवाद का कारण बन गए हैं।

आगे का रास्ता

सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि क्या ओबीसी आरक्षण 50% सीमा से अधिक बढ़ाया जा सकता है। अदालत का निर्णय सामाजिक न्याय के लिए ऐतिहासिक हो सकता है, लेकिन भाजपा और मध्य प्रदेश सरकार के लिए असली चुनौती राजनीतिक है — हिंदू अस्मिता और ओबीसी सशक्तिकरण के बीच संतुलन।

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण बचाव के लिए महाजन आयोग रिपोर्ट (1983) का हवाला देने से विवाद गहराया। रिपोर्ट में रामायण और महाभारत की घटनाओं को जातिगत भेदभाव के उदाहरण के तौर पर पेश किया गया था। हिंदू संगठनों ने इसे भगवान राम का अपमान बताया है। भाजपा, जो खुद को pro-Hindu पार्टी कहती है, अब दोहरे दबाव में है — हिंदू आस्था और ओबीसी न्याय दोनों को साधना।