मिथिला, बिहार का उत्तरी क्षेत्र, अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समृद्धि के बावजूद राज्य की विकास योजनाओं में अक्सर उपेक्षित रहा है। इस लेख में मिथिला को अलग राज्य का दर्जा देने की आवश्यकता को विभिन्न दृष्टिकोणों से आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है।
1. आर्थिक कारण:
मिथिला की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि और छोटे कुटीर उद्योगों पर निर्भर है, लेकिन राज्य के अन्य हिस्सों की तुलना में यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है।
कृषि क्षेत्र का योगदान और चुनौतियाँ:
राज्य GDP में योगदान: बिहार की GDP में कृषि का 24% योगदान है, और इसमें से मिथिला का 60% हिस्सा है। इसके बावजूद, मिथिला को सिंचाई और कृषि-संबंधी सुधारों में अपेक्षित सहायता नहीं मिलती।
बाढ़ से नुकसान:
बिहार सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल मिथिला में बाढ़ से 2,000 करोड़ रुपये तक की फसल बर्बाद होती है। बाढ़-प्रभावित जिलों जैसे दरभंगा, मधुबनी और सुपौल में उचित राहत नहीं मिलने से कृषि पर गहरा असर पड़ता है।
सिंचाई और उपज: मिथिला में कुल खेती योग्य भूमि का केवल 28% सिंचाई के दायरे में है, जबकि दक्षिण बिहार में यह आंकड़ा 48% है। इससे स्पष्ट है कि किसानों को कृषि उत्पादन में मुश्किलें होती हैं।
कुटीर उद्योग और रोजगार:
मधुबनी पेंटिंग का उद्योग: मधुबनी पेंटिंग के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार होने के बावजूद, इस उद्योग का वार्षिक योगदान केवल 200 करोड़ रुपये तक सीमित है, जो सरकारी प्रोत्साहन की कमी को दर्शाता है।
बेरोजगारी दर: मिथिला की बेरोजगारी दर 7.5% है, जो बिहार के औसत 5.3% से अधिक है। अलग राज्य बनने पर रोजगार सृजन के अवसर बढ़ सकते हैं।
2. सामाजिक कारण:
मिथिला का समाज सांस्कृतिक और भाषाई रूप से बिहार के अन्य हिस्सों से भिन्न है, और इसका संरक्षण अनिवार्य है।
भाषा और संस्कृति का संरक्षण:
मैथिली बोलने वाले: बिहार की जनसंख्या में लगभग 12% लोग मैथिली भाषा बोलते हैं, जो इस क्षेत्र के सांस्कृतिक पहचान का मुख्य आधार है। भारत सरकार की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित होने के बावजूद मैथिली के संरक्षण के प्रयास राज्य स्तर पर कमजोर रहे हैं।
मैथिली साहित्य का योगदान: मैथिली में साहित्यिक रचनाओं और लोक गीतों का एक समृद्ध भंडार है, जिसमें हर साल लगभग 200 नई पुस्तकें प्रकाशित होती हैं, लेकिन सरकारी समर्थन की कमी से मैथिली भाषा का विकास सीमित रह गया है।
दक्षिणी बिहार से सांस्कृतिक भिन्नता:
दक्षिणी बिहार में भोजपुरी और मगही भाषाएँ बोली जाती हैं, जबकि मिथिला में मैथिली का बोलबाला है। बिहार में सरकारी स्तर पर भोजपुरी और मगही के अधिक समर्थन के चलते मैथिली बोलने वालों को सामाजिक असमानता का अनुभव होता है।
3. बुनियादी ढाँचे की असमान स्थिति:
दक्षिण बिहार के विकास की तुलना में मिथिला का बुनियादी ढाँचा अत्यंत पिछड़ा हुआ है।
हवाईअड्डे और परिवहन सुविधाएँ:
हवाई अड्डों की संख्या: बिहार के दक्षिणी हिस्सों में 3 प्रमुख हवाई अड्डे (पटना, गया, और नालंदा में) मौजूद हैं, जबकि मिथिला में केवल दरभंगा हवाई अड्डा है। यह भी अंतर्राष्ट्रीय नहीं, बल्कि केवल सीमित घरेलू उड़ानों के लिए कार्यरत है।
अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल: दक्षिण बिहार में राजगीर जैसे स्थल हैं जहाँ ग्लास ब्रिज और अन्य पर्यटन सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जबकि मिथिला में ऐसे पर्यटन विकास की भारी कमी है।
ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों की स्थिति: मिथिला के गाँवों में 40% सड़कें कच्ची हैं, जबकि दक्षिण बिहार में केवल 20% कच्ची सड़कें हैं। इससे पता चलता है कि मिथिला में बुनियादी ढाँचा कितना कमजोर है।
चचरी पुल (बांस के पुल):
हर साल बाढ़ के कारण कई पुलों का नुकसान होता है, जिसके चलते लोगों को चचरी पुल, यानी बांस के अस्थायी पुल का सहारा लेना पड़ता है। आधुनिक पुलों के अभाव में यह स्थिति गंभीर चुनौती बनी हुई है।
पर्यावरण और बाढ़ की समस्या:
मिथिला में बाढ़ एक प्रमुख आपदा है जो हर साल जनजीवन और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है।
बाढ़ से प्रभावित जिलों की संख्या: 38 में से 22 जिले हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं, जिनमें से अधिकतर मिथिला में हैं। 2020 में बाढ़ के कारण बिहार को लगभग 4,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जिसमें मिथिला का योगदान 60% से अधिक था।
बाढ़ राहत बजट: राज्य सरकार का बाढ़ राहत बजट 1,500 करोड़ रुपये है, लेकिन मिथिला के लिए इसका वितरण असमान है, जिससे स्थानीय लोगों को अपर्याप्त राहत मिलती है।
बाढ़ प्रबंधन का अभाव:
मिथिला को अलग राज्य का दर्जा मिलने पर बाढ़ नियंत्रण में विशेष योजनाएँ बनाई जा सकती हैं, जिससे यहाँ के लोगों को हर साल आने वाली इस प्राकृतिक आपदा से राहत मिल सके।
सांस्कृतिक संरक्षण का महत्व:
मिथिला की संस्कृति, कला, भाषा, और परंपराएँ इसकी पहचान हैं। इनके संरक्षण के लिए एक अलग प्रशासनिक इकाई की आवश्यकता है।
कला और लोक संगीत का संरक्षण:
- मधुबनी पेंटिंग का वार्षिक उत्पादन: यह पेंटिंग उद्योग प्रति वर्ष लगभग 200 करोड़ रुपये का होता है, लेकिन इसके संरक्षण और प्रसार के लिए सरकारी सहायता का अभाव है।
सांस्कृतिक आयोजन: मिथिला क्षेत्र के महत्वपूर्ण त्योहार जैसे छठ पूजा, सामा-चकेवा, और मिथिला के विवाह संस्कार को राज्य स्तर पर उचित समर्थन नहीं मिलता है। अलग राज्य बनने पर इन लोक पर्वों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए उचित योजनाएँ बन सकती हैं।
लोक परंपराओं और भाषाई संरक्षण का प्रयास:
मिथिला क्षेत्र की परंपराएँ और रीति-रिवाज अलग हैं और इनमें निहित सांस्कृतिक धरोहर के लिए विशेष संवर्धन और समर्थन की आवश्यकता है। मैथिली को शिक्षा और प्रशासन में प्रोत्साहन देकर स्थानीय भाषाई पहचान को सुदृढ़ किया जा सकता है।
दक्षिणी बिहार से सांस्कृतिक और सुविधाजनक भिन्नता
दक्षिणी बिहार में कई सुविधाओं का विकास हुआ है, जबकि मिथिला क्षेत्र का विकास अपेक्षाकृत कम हुआ है। उदाहरण के लिए:
पर्यटन और संरचनाएँ: दक्षिण बिहार में राजगीर का ग्लास ब्रिज, पटना का बोटैनिकल गार्डन, और अन्य पर्यटन स्थल बने हैं। इसके विपरीत, मिथिला में पर्यटन के लिए न्यूनतम संरचनाएँ मौजूद हैं।
अभ्यारण्य और पक्षी संरक्षण क्षेत्र: दक्षिण बिहार में गया और नालंदा के आसपास के इलाकों में कई पक्षी अभ्यारण्य बनाए गए हैं, जबकि मिथिला में इस प्रकार की सुविधाओं का घोर अभाव है। इससे पर्यावरण संरक्षण और पर्यटन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
मिथिला क्षेत्र के विकास, सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक उत्थान के लिए इसे एक अलग राज्य का दर्जा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मिथिला के लिए कृषि, कुटीर उद्योग, बाढ़ प्रबंधन, बुनियादी ढाँचा, और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए विशेष योजनाओं की आवश्यकता है। यदि मिथिला को राज्य का दर्जा मिलता है, तो यह न केवल आर्थिक विकास में सहायक होगा, बल्कि सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक समृद्धि को भी सुरक्षित रखेगा।