सम्राट हर्षवर्धन की प्रतिमा को तिराहे से हटाकर अन्यत्र स्थापित किया गया, क्षत्रिय समाज में आक्रोश

सम्राट हर्षवर्धन की प्रतिमा को तिराहे से हटाकर अन्यत्र स्थापित किया गया, क्षत्रिय समाज में आक्रोश 2024-10-22
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प्रयागराज: कन्नौज नरेश और कुंभ मेले के जनक सम्राट हर्षवर्धन की प्रतिमा को अचानक शहर के एक प्रमुख तिराहे से हटाकर सीएमपी चौराहे पर स्थापित कर दिया गया है। यह बदलाव शहर में सड़क चौड़ीकरण और सौंदर्यीकरण के तहत किया गया है, लेकिन इससे क्षत्रिय समाज और इतिहास प्रेमियों में नाराजगी बढ़ रही है।  

प्रत्येक कुंभ और माघ मेले के दौरान त्रिवेणी संगम आने वाले श्रद्धालुओं की नजर इस प्रतिमा पर पड़ती थी, जिससे इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व बना हुआ था। हालांकि फ्लाईओवर निर्माण के बाद दृश्यता में कुछ कमी आई थी, लेकिन प्रतिमा का स्थान प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण था। अब इसे ऐसी जगह स्थापित कर दिया गया है, जहां श्रद्धालुओं और नागरिकों की नजर आसानी से नहीं जाती।  

हर्षवर्धन और कुंभ का ऐतिहासिक महत्व

सम्राट हर्षवर्धन को 7वीं शताब्दी में कुंभ मेले की शुरुआत का श्रेय दिया जाता है, जिसे उस समय "माहामाग्ह" कहा जाता था। उन्होंने अपने खजाने का बड़ा हिस्सा कुंभ मेले के आयोजन के लिए दान कर दिया था और गंगा तट पर एक बड़े धार्मिक मेले का आयोजन किया, जिसमें साधु-संत और आम नागरिक बड़ी संख्या में भाग लेते थे। 

महायान बौद्ध अनुयायी और धम्म के उपासक थे हर्षवर्धन

इतिहासकारों के अनुसार, सम्राट हर्षवर्धन महायान शाखा के अनुयायी थे और बोधिसत्व आर्य अवलोकितेश्वर के उपासक। वे लिच्छवी गणराज्य के बैंस क्षत्रिय वंश से संबंधित थे। क्षत्रिय समाज का आरोप है कि उनके योगदान को धीरे-धीरे इतिहास से मिटाने का षड्यंत्र किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री का धम्म पर ज़ोर, लेकिन विरोधाभास का आरोप

क्षत्रिय समाज का कहना है कि प्रधानमंत्री विदेशों में भारत की पहचान बुद्ध और धम्म के मूल्यों पर आधारित बताते हैं, लेकिन देश में इसके विपरीत कार्य किए जा रहे हैं। समाज इसे क्षत्रिय इतिहास और गौरव के प्रति उपेक्षा के रूप में देख रहा है। 

समाज ने मांग की है कि सम्राट हर्षवर्धन की प्रतिमा को पूर्व स्थान पर स्थानांतरित किया जाए, ताकि उनके ऐतिहासिक योगदान को उचित सम्मान मिल सके।