प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि।
शारदा सिन्हा का जन्म 1952 में बिहार के सुपौल जिले के हुलास गाँव में हुआ था। उनके परिवार में संगीत का गहरा संबंध था। उनके पिता, ब्रजकिशोर सिन्हा, जो एक शिक्षक थे, संगीत के प्रति गहरी रुचि रखते थे। शारदा सिन्हा की संगीत में रुचि की शुरुआत भी उनके पिता के मार्गदर्शन से हुई। उनके परिवार में शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ लोक संगीत की भी अहमियत थी, और शारदा का प्रारंभिक जीवन संगीत के माहौल में ही बीता।
घर के आंगन में गाए गए गीतों ने उन्हें संगीत के प्रति गहरी रुचि जगाई। शारदा ने अपनी गायकी की शुरुआत गाँव के मेलों और त्योहारों में की, जहाँ उनकी आवाज़ ने सबका ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद उन्होंने विशेष रूप से लोक संगीत को अपना लिया और उसे एक नई दिशा देने का प्रयास किया।
संगीत शिक्षा और शास्त्रीय संगीत का प्रभाव।
शारदा सिन्हा ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्रमुख गुरुओं से ली, और संगीत के शास्त्रीय रूपों, विशेषकर ठुमरी और ध्रुपद में गहरी रुचि दिखाई। उनके गायन में शास्त्रीय संगीत के तत्वों का गहरा प्रभाव था, लेकिन वे लोक संगीत की सरलता और गहराई को भी बनाए रखते थे। यह अनोखा संगम उनके संगीत को और भी सशक्त बनाता था।
उनकी गायकी में भावनाओं की सूक्ष्मता और शास्त्रीय संगीत का जो मेल था, वह उन्हें अन्य कलाकारों से अलग करता था। शारदा ने लोक संगीत में शास्त्रीयता को मिलाकर एक नई शैली बनाई, जो उन्हें आज भी संगीत की दुनिया में एक अद्वितीय स्थान दिलाती है।
करियर की शुरुआत और प्रमुख मील के पत्थर।
शारदा सिन्हा का संगीत करियर 1970 के दशक में शुरू हुआ था। उनका पहला बड़ा गीत "छठी माई की आरती" 1975 में गाया गया, जो खासकर छठ पूजा के समय गाया जाता था। इस गीत ने उन्हें बिहार और उत्तर प्रदेश में व्यापक पहचान दिलाई। इसके बाद उन्होंने कई लोक गीतों को अपनी आवाज़ दी, जो आज भी धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा बने हुए हैं।
1980 के दशक में शारदा सिन्हा ने बॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई। 1989 में फिल्म "मैंने प्यार किया" में "मुझे से सजना" गीत से उनका फिल्म संगीत में प्रवेश हुआ। इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में गीत गाए और बॉलीवुड संगीतकारों में अपना नाम दर्ज कराया। "गैंग्स ऑफ वासेपुर" (2012) जैसी फिल्मों में भी उनका योगदान था।
लोक संगीत के प्रचार में योगदान।
शारदा सिन्हा का सबसे महत्वपूर्ण योगदान लोक संगीत के प्रचार और संरक्षण में था। उन्होंने छठ पूजा और अन्य धार्मिक अवसरों पर गाए गए गीतों को लोकप्रिय बनाया। "उगी है सूरज देव" जैसे गीत छठ पूजा के दौरान अनिवार्य रूप से गाए जाते हैं और यह गीत आज भी कई सालों बाद लोगों के दिलों में ताजा हैं।
उनकी गायकी ने भारतीय लोक संगीत को शास्त्रीय और आधुनिक संगीत शैलियों के साथ जोड़ा, जिससे यह पारंपरिक संगीत शैली नए श्रोताओं तक पहुंच पाई। शारदा सिन्हा ने लोक संगीत को न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय बनाया।
पुरस्कार और सम्मान।
शारदा सिन्हा को उनके संगीत में योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 1991 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार मिला, और 2018 में उन्हें पद्म भूषण जैसे उच्चतम नागरिक पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
शारदा सिन्हा का जीवन और संगीत भारतीय लोक संगीत के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान को दर्शाता है। उन्होंने लोक संगीत को आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया और इसे एक वैश्विक पहचान दिलाई। उनकी गायकी न केवल भारत के विभिन्न हिस्सों में, बल्कि दुनिया भर में एक सशक्त धरोहर के रूप में मौजूद रहेगी।
शारदा सिन्हा का संगीत अब केवल एक कला रूप नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। वे हमेशा भारतीय लोक संगीत की महान हस्ती के रूप में याद की जाएंगी।